भौतिक जगत, भौतिक विज्ञान की परिभाषा, एवं भौतिक राशिया

विज्ञान:- प्रकृति के क्रम बध्य अध्ययन से अर्जित प्रमाणित ज्ञान को विज्ञान कहते है। विज्ञान शब्द का अर्थ “सिटिंया” शब्द से लिया गया है। जिसका मतलब अध्ययन
अविष्कार समझना या बताना होता है।

भौतिक विज्ञान “भौतिक” शब्द का अर्थ प्रकृति से होता है।

प्रकृति:- जिसे हम छू सकते है महसूस कर सकते है देख सकते है भौतिक या प्रकृति कहलाती है। एंव प्रकृति मे से जिस वस्तु को अध्ययन के लिए चुना जाता है। उसे
भौतिकी कहते है।

भौतिक विज्ञान:- विज्ञान की वह शाखा जिसमे प्रकृति व प्रकृति मे होने वाली अन्योनय क्रियाओ का अध्ययन किया जाता है। उसे भौतिक विज्ञान कहते है।
आइंस्टीन” के अनुसान – भौतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमे द्रव्यमान का ऊर्जा मे तथा ऊर्जा का द्रव्यमान मे परिवर्तन व इस पर होने वाली अन्योन्य क्रियाओ का अध्ययन किया जाता है

E=∆MC2

E= ऊर्जा ,M= द्रव्यमान , C= प्रकाश का वेग(3*108)

भौतिकी को दो भागो मे विभक्त किया जाता है।

चिरसम्मत भौतिकी:- “चिर” का मतलब “आदिकाल बाबा आदम” के जमाने का, चिरसम्मत भौतिक विज्ञान की वह शाखा हैं जिसका निर्माण 19वीं सदी से पहला हुआ था चिरसम्मत भौतिकी के निम्नलिखित शाखाएं हैं
यांत्रिकी,

विघुत धारा भौतिकी’

प्रकाषिकी भौतिकी

उष्मागतिकी भौतिकी

चुंम्बकीय भौतिकी आदि का अध्ययन किया जाता है।
आधुनिक भौतिकी:- भौतिक विज्ञान की वह शाखा जिसका निर्माण 19वीं सदी के बाद हुआ आधुनिक भौतिकी कहलाती है।

इसमे क्वांटम भौतिकी, परमाणु भौतिकी, नाभिकीय भौतिकी आदि का अध्ययन किया जाता है।


भौतिकी मे किसी वस्तु का अध्ययन दो प्रकार से किया जाता है।

1. एकीकरण 2. न्यूनीकरण
एकीकरण:- जब किसी वस्तु का अध्ययन नियमो तथा पदो के रूप मे किया जाता है। उसे एकीकरण कहते है।
उदाहरण – ऊर्जा का एक रूप् से दूसरे रूप मे परिवर्तन
न्यूनीकरण:- जब जटिल निकायो का अध्ययन किया जाता है। तो इसे छोटे -छोटे भागो मे विभक्त कर अध्ययन किया जाता है। तो इसे न्यूनीकरण कहते है।

बल:- जब वस्तु को धक्का देने या खीचने अथवा किसी वस्तु को एक विन्दु से दूसरे विन्दु तक गतिषील विस्थापित करने के लिए या किसी स्थिर अवस्था मे खडी वस्तु को गति प्रदान करने के लिए एक भौतिक राषि की आवष्यकता होती है। बल कहते है।
बल मुख्य रूप से दो प्रकार के होते है। – 1. मूल बल 2. व्युत्पन्न बल
मूल बल:- ऐसे बल जिन्है व्यक्त करने के लिए अन्य बल की आवष्यकता नही होती है। और वे स्वंय मे सिद्ध होते है।
मूल बल चार प्रकार के होते है।

  1. गुरूत्वाकर्षण बल:- किसी स्वतन्त्र पूर्वक गिरती हुई वस्तु पर लगने वाला बल या जब किसी वस्तु को किसी उचाई से स्वतन्त्रता पूर्वक छोडा जाता है। तो पृथ्वी अपनी ओर से आकर्षण बल लगाती है। जिसे गुरूत्वाकर्षण बल कहते है।
    दो द्रव्यमानो के मध्य लगने वाला बल गुरूत्वाकर्षण बल दोनो द्रव्यमानो के गुणनफल के
    समानुपाती तथा उन द्रव्यमानो के बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।


गुरूत्वाकर्षण बल हमेषा आर्कषण बल प्रकृति का होता हैं। गुरूत्वाकर्षण बल की परास 1039m होती है। अर्थात अंनत
यह दुनिया का सबसे दुर्बल बल है।
2. विद्युत बल:- दो आवेषो के मध्य लगने वाला आर्कषण तथा प्रतिकर्षण बल विद्युत बल कहलाता है।
कूलाॅम के नियमानुसार लगने वाला बल दोनो आवेषो के गुणनफल के समानुपाती
होता है।

लगने वाला बल दोनो आवेषो की बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।

यह आर्कषण तथा प्रतिकर्षण दोनो प्रकृति का होता है। समान आवेषो मे प्रतिकर्षण होता है। परास अल्प होती है। विद्युत बल गुरूत्वीय बल से प्रबल होता है।
3. चंुम्बकीय बल:- दो चंुबको के मध्य लगाने वाला बल चंुबकीय बल कहलाता है।
कूलाॅम के नियमानुसार – लगने वाला बल चंुबक के ध्रुव की धु्रव प्राबल्यता
के गुणनफल के समानुपाती तथा उनकी बीच की दूरी के वर्ग व्युत्क्रमानुपाती होता है।

4. नाभिक मे उपस्थित न्युट्रान व प्रोटान के मध्य लगने वाला बल नाभिकीय बल
कहलाता है। यह दो प्रकार का होता है।
दुर्बल नाभिकीय बल:- परमाणु मे उपस्थित नाभिक व नाभिक के चारो और चक्कर लगाने
म के मध्य लगने वाला बल दुर्बल नाभिकीय बल कहलाता है।
क्योकि किसी परमाणु मे आसानी से आ सकता है एंव जा सकता है।
प्रबल नाभिकीय बल:- नाभिक मे उपस्थित न्युट्रान तथा प्रोटान के मध्य लगने वाला बल
नाभिकीय बल कहलाता है।
व्युत्पन्न बल:- वे बल जो मूल बलो से मिलकर बने हो व्युन्पन्न बल कहलाते है।
डदाहरण – सम्पर्क बल तनाव बल घर्षण बल पृष्ठ तनाव बल श्यान बल

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *